लाइब्रेरी में जोड़ें

हरिहरपुरी की कुण्डलिया


हरिहरपुरी की कुण्डलिया


तारक सारे जीव का, परमेश्वर भगवान।

जिस मानव की वृत्ति यह, वही दिव्य श्रीमान।।

वही दिव्य श्रीमान, जगत का उत्तम प्राणी।

करता उसको पार,बझी है जिसकी गाड़ी।।

कहें मिसिर कविराय,बनो दुख का उद्धारक।

मारो ऐसा मंत्र,बने जो उत्तम तारक।।


मारो कुटिल प्रवृत्ति को, दुर्योधन को मार।

रावण दूषित भाव को, बने राम ललकार।।

बने राम ललकार, यही त्रेता कहता है।

आया द्वापर काल, सदा कान्हा रचता है।।

कहें मिसिर कविराय, भूमि को सहज उबारो।

बनो राम श्रीकृष्ण, दनुज- दैत्यों को मारो।।


संकटमोचन जो बना, कहलाया वह वीर।

महावीर हनुमान बन, लिया गदा गंभीर।।

लिया गदा गंभीर, कमर असुरों का तोड़ा।

किया वार पर वार, मुष्टिका से मुँह फोड़ा।।

कहें मिसिर कविराय, करो जीवन में शोधन।

कर सीता की खोज,बनो प्रिय संकटमोचन।।


रचना सुंदर स्वयं की, करता सदा सुजान।

अपनी त्रुटियाँ ढूढ़ता,सदा विवेकी ज्ञान।।

सदा विवेकी ज्ञान, पंथ तार्किक है चाहत।

करता बुद्धि प्रयोग, नियोजित पाता राहत।।

कहें मिसिर कविराय, नित्य गलती से बचना।

जीवन बने महान, ईश सा खुद को रचना।।


मानव बनने के लिये, कर उत्तम कर्तव्य।

आगे रख आदर्श को,यह अति निर्मल भव्य।।

यह अति निर्मल भव्य, दिव्य इसका दर्शन है।

सत्य शुभ्र शिवमान, मधुर इसका स्पर्शन है।।

कहें मिसिर कविराय,मार जगती का दानव।

सद्विवेक -सद्ज्ञान,बनाता सुंदर मानव।।




   7
2 Comments

Renu

23-Jan-2023 04:49 PM

👍👍🌺

Reply

अदिति झा

21-Jan-2023 10:34 PM

Nice 👍🏼

Reply